भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कभी-कभी उसकी याद में / प्रतिमा त्रिपाठी
Kavita Kosh से
कभी-कभी उसकी याद में ..
कुण्डी बेवजह दस्तक देती है
इंतज़ार में दरवाजे खड़े रहते हैं
घर भूला रहता है अपना पता !
कभी-कभी उसकी याद में ..
आँखों में चुभती रहती है सहर
शाम तसल्ली बख्शा करती है
नींद रातों पे कुर्बान हो जाती है !
कभी-कभी उसकी याद में ..
कॉफ़ी के कई प्याले जमा होते हैं
निवाले हाथों से छूट जाते हैं
कोई हूक हलक में अटक जाती है !
कभी-कभी उसकी याद में ..
रूह कुछ और उपर उठ जाती है
ज़िस्म कुछ और ढला जाता है
दिल वहीँ ठहरा हुआ..
गोशा-ए-दस्त हुआ जाता है !
कभी-कभी ..उसकी याद में !