कभी-कभी तो वो इतनी रसाई<ref>पहुँच, प्रवेश</ref> देता है
कि सोचता है तो, मुझको सुनायी देता है
कभी वो हिज्र के मौसम में दिल में खिलता है
कभी विसाल की सूरत जुदाई देता है
न जाने देख लिया क्या, हमारी आँखों ने
कि अब तो एक ही मंज़र दिखायी देता है
अजीब बात है, वो एक-सी ख़ताओं पर
किसी को कै़द, किसी को रिहाई देता है
अगर वो नाम तुम्हारा नहीं, तो किस का है?
हवा के शोर में अक्सर सुनायी देता है
चलो वो झूट था, जो कुछ सुना था कानों ने
तो फिर इन आँखों को, ये क्या दिखायी देता है
शब्दार्थ
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