भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कभी-कभी / मेटिन जेन्गिज़ / मणि मोहन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कभी- कभी कोई आता है
रहने लगता है दिल में
मेरी पूरी देह को घेरकर
मुझे सुरक्षित रखने वाला लोहा पिघलने लगता है

ऐसे शब्द बोलता है जिन्हें मैंने कभी नहीं सुना
मुझे अपने ही बारे में बताता है
दूर ले जाता है मुझे बुहारकर
उलट - पुलट देता है मेरी दुनिया

सिर्फ़ इतना भर नहीं समझना चाहता
यह कोई और है या शायद तुम
पर अन्त में मुझे समझ मे आ जाता है
मैं ख़ुद ही मुसाफ़िर हूँ अपना ।

मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : मणि मोहन

लीजिए, अब यही कविता मूल तुर्की भाषा में पढ़िए
            Metin Cengiz
             GÜN OLUR

gün olur biri gelir
yerleşir yüreğime
sarar bütün gövdemi
erir beni koruyan demir

duymadığım sözler eder
beni anlatır uzun uzun bana
ters yüz eder dünyamı
götürür uzaklara beni de beraber

değil, yalnızca bu değil anlatmak istediğim
o belki başkası belki sensin
ama anlarım ki sonunda
kendinin yolcusu benim