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कभी-कभी / रेणु हुसैन

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दस्तक बजती रहती है
कोई नहीं आता

कुछ कहती है तन्हाई
समझ नहीं आता

हर लमहा ऐसा उलझे
सुलझाया नहीं जाता

वक्त ये कैसा
बिताया नहीं जाता