कभी इस कदर भी सँवरना नहीं / मधुभूषण शर्मा 'मधुर'
कभी इस कदर भी सँवरना नहीं ,
रहे अपना चेहरा भी अपना नहीं !
सजाते रहें आप सपने नए ,
भले ज़िन्दगी सिर्फ़ सपना नहीं !
न कोई किसी का यहां है मगर ,
पराया भी सब को समझना नहीं !
जमा कर रहे इतना सामान क्यूं ,
यहीं तो हमेशा ठहरना नहीं !
करें हाँ पे उसकी यक़ीं किस तरह ,
कभी जिसने सीखा न कहना नहीं !
ये पतझड़ के पत्ते कहें किस तरह ,
हवा ! देख हम से उलझना नहीं !
ज़रा चल जवानी की बातें करें ,
गया वक़्त यूं तो पलटना नहीं !