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कभी उबाल कर ठंडा किया शरारों ने / प्रेम भारद्वाज
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कभी उबाल कर ठंडा किया शरारों ने
कभी तो आग लगाई है अशआरों ने
जहाँ से पार उतरने में जन्म लग जाएँ
पटक दिया है वहाँ वक्त के कहारों ने
शुरू हुई थी सूखी तीलियों से पत्तों से
मगर फैलाई तो हवाओं ने देवदारों ने
कहाँ पे जा अब रोना ग़मों का हम रोएं
मिजाज़ पुरसी में किया जो ग़मगुसारों ने
किसी के प्रेम में पाग़ल विलाप करते थे
लहुलुहान किए उसके पलटवारो ने