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कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता / शहरयार
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					कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
 
कहीं ज़मीं तो कहीं आसमाँ नहीं मिलता 
जिसे भी देखिये वो अपने आप में गुम है 
ज़ुबाँ मिली है मगर हमज़ुबाँ नहीं मिलता 
बुझा सका है भला कौन वक़्त के शोले 
ये ऐसी आग है जिस में धुआँ नहीं मिलता 
तेरे जहान में ऐसा नहीं कि प्यार न हो 
जहाँ उम्मीद हो इस की वहाँ नहीं मिलता 
 
	
	

