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कभी किसी दिन घर भी आओ / जय चक्रवर्ती

आते-जाते ही मिलते हो
भाई! थोड़ा वक़्त निकालो
कभी किसी दिन घर भी आओ

चाय पियेंगे,बैठेंगे कुछ देर
मजे से बतियायेंगे
कुछ अपनी,कुछ इधर-उधर की
कह-सुन मन को बहलायेंगे

बीच रास्ते ही मिलते हो
भाई! थोड़ा वक़्त निकालो
कभी किसी दिन घर भी आओ

मिलना-जुलना, बात-बतकही
हँसी-ठिठोली सपन हुए सब
बाँट-चूँट कर खाना-पीना
साझे दुख-सुख हवन हुए सब

रोज़ भागते ही मिलते हो
भाई थोड़ा वक़्त निकालो
कभी किसी दिन घर भी आओ!

ड्यूटी, टिफिन मशीन,सायरन
जुता इन्हीं मे जीवन सारा
जो अपना है दर्द बन्धुवर!
शायद वो ही दर्द तुम्हारा

बस, मिलने को ही मिलते हो
भाई थोड़ा वक़्त निकालो
कभी किसी दिन घर भी आओ!