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कभी कोई था / अनिरुद्ध उमट
Kavita Kosh से
फिर यह हुआ
साँस आखिरी
चढ़ गयी
सीढ़ी एक और
छत बन गयी
मृत होना था जहाँ मुझे
थी चारदीवारी
जाना था जिस मार्ग
कतरन सा वह अब
था लिपटा
गले आँखों पर
थी जल्दी तुम्हे
तुम गए
आकाश बताते छत को
मुझे बुलाते
कभी कोई था बीच हमारे
नहीं माना हमने
कहता है अब
था धोखा वह
ठोस
आखिरी साँस आ गयी
थम गयी