Last modified on 2 सितम्बर 2018, at 21:58

कभी ख़ामोश बैठोगे कभी कुछ गुनगुनाओगे / नज़ीर बनारसी


कभी ख़ामोश बैठोगे कभी कुछ गुनगुनाओगे
मैं उतना याद आऊँगा मुझे जितना भुलाओगे

कोई जब पूछ बैठेगा ख़ामोशी का सबब तुमसे
बहुत समझाना चाहोगे मगर समझा ना पाओगे

कभी दुनिया मुक्कमल बन के आएगी निगाहों में
कभी मेरे कमी दुनिया की हर इक शै में पाओगे

कहीं पर भी रहें हम तुम मुहब्बत फिर मुहब्बत है
तुम्हें हम याद आयेंगे हमें तुम याद आओगे