भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कभी ख़ुशी के कभी ग़म के गीत गाते रहे / कांतिमोहन 'सोज़'
Kavita Kosh से
कभी ख़ुशी के कभी ग़म के गीत गाते रहे I
हमारे पास था जो भी तुम्हें सुनाते रहे II
ये जानना भी कोई कम ख़ुशी की बात नहीं,
हमारे अश्क तुम्हें रात-दिन हँसाते रहे I
अन्धेरी रात में जब-जब चराग़ जल न सके,
उफ़क़ पे याद के जुगनू से जगमगाते रहे I
दयारे-संग में शीशे की कुछ बिसात न थी,
पर अपने पास वही था सो आज़माते रहे I
गिला हो तंज़ हो फ़रियाद हो कि हो नाला,
था उनका तर्ज़े-अमल ये कि मुस्कुराते रहे I
तेरे इशारे पे अब कौन जान दे देगा,
अकेले सोज़ बचे थे सो वो भी जाते रहे II