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कभी जब उन के शानों से ढलक जाता रहा आँचल / राजेंद्र नाथ 'रहबर'

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 कभी जब उन के शानों से ढलक जाता रहा आंचल
तो दिल पर एक बिजली बन के लहराता रहा आंचल

नतीजा कुछ न निकला उन को हाले-दिल सुनाने का
वो बल देते रहे आंचल को, बल खाता रहा आंचल

इधर मज्बूर था मैं भी, उधर पाबंद थे वो भी
खुली छत पर इशारे बन के लहराता रहा आंचल

फ़क़त इक बार उन के रेशमी आंचल को चूमा था
मेरे एह्सास पर हर शाम छा जाता रहा आंचल

हवा के तुंद झोंके ले उड़े जब उन के आंचल को
तो उड़ उड़ कर उन्हें ता-देर तड़पाता रहा आंचल

वो आंचल को समेटे जब भी 'रहबर` पास से गुज़रे
मेरे कानों में कुछ चुपके से कह जाता रहा आंचल