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कभी जब वक्त से है जख़्म खाया / रंजना वर्मा

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कभी जब वक़्त से है जख़्म खाया ।
गया है छोड़ तब अपना भी साया।।

ना हम सोये कभी तनहाइयों में
हमें आवाज दे किस ने बुलाया।।

हमारे दर्द का एहसास ले कर
हमारी जिंदगी में कौन आया।।

खिला करते सुमन हैं कंटकों में
बहारों ने नहीं जिनको खिलाया।।

डराने अब लगी खामोशियाँ हैं
जमाने ने है वो मंजर दिखाया।।

बवंडर रेत के उठने लगे हैं
उमस ने भी बहुत हमको सताया।।

हैं नखलिस्तान तो मरुभूमि में भी
रखा धीरज उसी ने किंतु पाया।।