कभी तो मुहब्बत की बरसात होगी / सूरज राय 'सूरज'
कभी तो मुहब्बत की बरसात होगी।
यक़ीं होगा मज़हब, वफ़ा ज़ात होगी॥
बचा लो इसे नेमते-रब है वरना
हंसी मुल्क़ में अपने आयात होगी॥
मेरा ही नशेमन जला है हमेशा
ये घर के दियों की ख़ुराफ़ात होगी॥
सुनो गांठ में बांध लो ये नसीहत
यक़ीं है जहाँ पर वहीं घात होगी॥
यहाँ बेड़ियों-सी कसी हैं ये सांसे
यहाँ क़ब्र भी इक हवालात होगी॥
तुझे ब्याहने आएगी मौत जिस दिन
न शहनाई होगी न बारात होगी॥
मुक़द्दर की बाज़ी है पांसे समय के
यक़ीनन-यक़ीनन मेरी मात होगी॥
चलो आज मरघट में बैठेंगे ऐ दिल
वहीं ज़िंदगी से मुलाक़ात होगी॥
लबों से तेरे मुखबरी मेरी, न न
तेरे आँसुओं की करामात होगी॥
हो डोली कोई या जनाज़ा किसी का
थके हारे कांधे पर ही बात होगी॥
शमा हो दिया हो, ये दिल हो या "सूरज"
जलेगा वही, जिसमे औक़ात होगी॥