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कभी दूसरों को जो छलते नहीं हैं / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
कभी दूसरों को जो छलते नहीं हैं ।
जमाने की परवाह करते नहीं हैं।।
खिले फूल खुशबू लुटाने लगे अब
भ्रमर टोलियों में निकलते नहीं है।।
बसंती हवा इस तरह है रही चल
हृदय प्रेमियों के सँभलते नहीं हैं।।
सुघर तितलियों के सुनहरे परों पर
सजे ओस के बिंदु ढलते नहीं हैं।।
बिखरने लगी गंध महुए की शायद
लगे आम के बौर झरते नहीं हैं।।
रहे रात भर चकवा चकवी वियोगी
मगर वे दिलों से बिछड़ते नहीं है।।
पपीहा लगा नाम रटने पिया का
पिया के बिना दिन गुजरते नहीं हैं।।