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कभी निराश हो आँखों को मूँदकर लेटे / बल्ली सिंह चीमा
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कभी निराश हो आँखों को मूँदकर लेटे ।
कभी उम्मीद में आँखें बिछा के बैठ गए ।
कभी सवाल को मुश्किल समझ के छोड़ दिया,
कभी जवाब में आँखें दिखा के बैठ गए ।
ये बात मेरी समझ से तो अब भी बाहर है,
कि तुम भी प्यार में क्यों रो-रुला के बैठ गए ।
ये सोच कर कि ये सारा वतन ही अपना है,
तमाम लोग तराई में आके बैठ गए ।
वो जिनके न्याय पे तुमको भी नाज था 'बल्ली'
वो लोग दूध में पानी मिला के बैठ गए ।