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कभी न भाव में उठते खुमार देखा है / बाबा बैद्यनाथ झा
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कभी न भाव में उठते खुमार देखा है
नहीं उजास मिला अंधकार देखा है
दिलों का मेल जहाँ हो शकल नहीं भी हो
बिना मिले ही किसी पर निसार देखा है
बड़ा गुरूर उसे था कभी तरक्क़ी पर
हुआ चढ़ाव वहीं अब उतार देखा है
उसे बना था हमेशा अमीर-सा चस्का
रखे हुए थे विदेशी दिनार देखा है
जिसे भी चाह लिया हो उसे उठा लेता
भले ही लोग को बनते शिकार देखा है
गँवा दिया है सभी कुछ जुए चकल्लस में
मिला न एक भी ऐसा गँवार देखा है