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कभी बन गया हूँ वह मैं / लाल्टू
Kavita Kosh से
मैं
धरती की परिक्रमा कर
चुका था
जब
उसे आख़िरी बार बरामदे से झुककर
मुझे
विदा कहते देखा था
उसके
मरने पर थोड़ा ज़रूर पर बहुत
ज़्यादा रोया न था
अजीब
लगता था
धरती
के इस पार वह मर चुका था
जिसके
निःसृत अणुओं से
माँ
के पेट में कभी मैं जन्मा था
उसके
मरने पर मैं कुछ तो बदला था
तभी
से मुड़-मुड़
कर सोचता रहा हूँ चालीस साल
असके
कन्धों पर मैं
और
अँधेरी सड़कों पर चलता वह
अनजाने
ही कभी बन गया हूँ वह मैं
मेरे
कन्धों पर कोई और है
अँधेरी
सड़कें भी हैं
मैं
चलता चला हूँ ।