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कभी मत मिलें, मिले रहें नित / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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कभी मत मिलें, मिले रहें नित, पर स्मृति रहती नित्य नवीन।
स्मृतिकी परम मधुरता पल-पल बढ़ती, होती कभी न छीन॥
स्मृति ही तन-धन, स्मृति ही जीवन, स्मृतिमें ही मन रहता लीन।
प्राणरूप ये, स्मृति-जल-धारासे ही बचे हु‌ए हैं मीन॥