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कभी मत मिलो, पूछो न कभी / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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कभी मत मिलो, पूछो न कभी तुम मुझसे कुछ मन की बात।
भूलो, भूले रहो सदा ही अति नगण्य मुझको दिन-रात॥
पर मैं कभी न भूलूँ तुमको, करती रहूँ याद निर्मल।
नित्य देखती रहूँ तुम्हारा मैं शुचि सुन्दर वदन-कमल॥
खाली करूँ हृदयको सबसे, खूब सजान्नँ तव अनुकूल।
सदा बसाये रखूँ तुम्हें उसमें, तुम चाहे हो प्रतिकूल॥
बढ़ता रहे उारोनर मेरा यह केवल एकाङङ्गी प्रेम।
यही बने सर्वत्र सदा ही मेरा वाछित योग-क्षेम॥