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कभी वो रंज के सांचे में ढाल देता है / शोभा कुक्कल

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कभी वो रंज के सांचे में ढाल देता है
कभी खुशी वो मुझे बेमिसाल देता है

जवाब सोचती रहती हूँ मैं कई दिन तक
वो इक सवाल हवा में उछाल देता है

हमारे प्यार सा दुनिया में प्यार सबका हो
हमारे प्यार की ये जग मिसाल देता है

किसी को रंक बनाता है वो सुदामा सा
किसी को दौलत ओ जाहो-जलाल देता है

जो मुझसे शेर के सांचे में ढल नहीं पाता
ख़ुदा कभी मुझे ऐसा ख़याल देता है

उसी के हाथ में है कारोबार दुनिया का
कभी कमाल कभी वो ज़वाल देता है

वो शायरों को अता करता है ख़याल नये
मुसव्विरों को वो कस्बे-कमाल देता है

है उसका खास करम मेरे दिल पे ऐ 'शोभा'
वो मेरे दिल को कसक लाज़वाल देता है।