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कभी वो राह में बिखरे हुए पत्थर नहीं गिनते / अशोक रावत
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कभी वो राह में बिखरे हुए पत्थर नहीं गिनते,
सफ़र का शौक है जिनको किलोमीटर नहीं गिनते.
उन्हें भी दर्द देती हैं सफर की मुश्किलें लेकिन,
जो मंज़िल तक पहुँचते हैं कभी ठोकर नहीं गिनते.
उन्हें जब चोट लगती है गिरा देते हैं अपने फल.
दरख्त अपनी तरफ फैंके हुए पत्थर नहीं गिनते.
जिन्होंने ज़िंदगी को चुन लिया है हसफ़र अपना,
कभी एहसास में ठहरे हुए मंज़र नहीं गिनते.
यही तो ख़ासियत होती है बस ईमान वालों की,
कभी नीचे नहीं गिनते, कभी ऊपर नहीं गिनते.
भरोसे के जो शायर हैं, वो अपने खोट गिनते हैं,
किसी की शायरी में नुक़्ते और अक्षर नहीं गिनते.
जो अपने दोस्तों की क़द्र करना सीखा जाते हैं,
वो अपने दुश्मनों के नाम तो अक्सर नहीं गिनते.