कभी वो शोख़ होता है कभी वो टिमटिमाता है / शोभा कुक्कल
कभी वो शोख़ होता है कभी वो टिमटिमाता है
कोई दीपक अंधेरे में हमें रस्ता दिखाता है
सुकूं मिलता है हमको जब कभी वो गुनगुनाता है
कभी हर तार उसके साज़ का हमको रुलाता है
ये जीवन तो किसी सूरत हमारा कट ही जाता है
अगर हो साथ हमदम भी तो यह फिर गुनगुनाता है
कभी जाता है नज़रें यूँ बचा कर ग़ैर हो जैसे
कभी वो दोस्ती की हर घड़ी कसमें भी खाता है
हंसाता है कभी हमको रुलाता है कभी हमको
कभी दिन में कभी वो रात में सपने दिखाता है
नहीं पास उसके जब कोई हल मेरी मुश्किल का
मुझे वो किस लिए फिर ख़्वाब महलों के दिखता है
सुनाती है कहानी उसकी पेशानी पसीने की
वो अपनी रोज़ी रोटी अपनी मेहनत से कमाता है
ज़रा सी आंच भी आने नहीं देता है वो हम पर
ख़ुदा ऐ मेहरबाँ हम पर सदा शफ़क़त लुटाता है
भरी हो लाख कांटों से मेरी यह रहगुज़र शोभा
पकड़ अंगों वो खुद मेरी मुझे रस्ता दिखाता है।