भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कभी सुख का समय बीता / कमलेश भट्ट 'कमल'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कभी सुख का समय बीता, कभी दुख का समय गुजरा

अभी तक जैसा भी गुजरा मगर अच्छा समय गुजरा !


अभी कल ही तो बचपन था अभी कल ही जवानी थी

कहाँ लगता है इन आँखों से ही इतना समय गुजरा !


बहुत कोशिश भी की, मुट्ठी में पर कितना पकड़ पाए

हमारे सामने होकर ही यूँ सारा समय गुजरा !


झपकना पलकों का आँखों का सोना भी जरूरी है

हमेशा जागती आँखों से ही किसका समय गुजरा !


उन्हीं पेडों पे फिर से आ गए कितने नए पत्ते

उन्हीं से जैसे ही पतझार का रूठा समय गुजरा !


हमें भी उम्र की इस यात्रा के बाद लगता है

न जाने कैसे कामों में यहाँ अपना समय गुजरा !