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कभी हक़ीक़त, कभी गुमाँ-सा मुझे मिला वह / निश्तर ख़ानक़ाही

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कभी हक़ीक़त, कभी गुमाँ-सा मुझे मिला वह
अजीब बादल का सायबाँ-सा मुझे मिला वह
      
वो जिसकी संगत में मैंने समझे समय के मानी
पलट के इक उम्र-रायगाँ* सा मुझे मिला वह

वो मुझ मुसाफ़िर की क्या तवाज़ो* ग़रीब करता
ख़ुद अपने घर ही में मेहमाँ सा मुझे मिला वह

तमाज़तें* गर्मियों के दिन की करीब-तर थीं
निकलते जाड़ों के आस्माँ-सा मुझे मिला वह

मैं छोड़ आया था सब्त* जिस पर शिनाख़्त अपनी
महावटों में धुले मकाँ-सा मुझे मिला वह

मैं कैसे उसको गए दिनों का हिसाब दूँगा
जो अब मुजस्सम ग़मे-जियाँ-सा* मुझे मिला वह

1- उम्र-रायगाँ--व्यर्थ जाने वाली उम्र

2- तवाज़ो--आदर-सत्कार

3- तमाज़तें--तपन

4- सब्त--अंकित

5- ग़मे-जियाँ-सा--हानि का साकार रूप