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कभी हमारे लिए थीं महब्बतें तेरी / राजेंद्र नाथ 'रहबर'

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कभी हमारे लिये थीं मुहब्बतें तेरी
रहेंगी याद हमेशा रफ़ाक़तें तेरी

रवां दवां रहे सिक्का तेरे तबस्सुम का
दिलों पे चलती रहें बादशाहतें तेरी

नज़र में, रूह में, दिल में, लहू में, सांसों में
कहां कहां नहीं हमदम सुकूनतें तेरी

है कौन तुझ से बड़ा मुंसिफ़ो-अदील यहां
तेरे हज़ूर करूंगा शिकायतें तेरी

बिला-सबब नहीं सिज्दा-गुज़ार तू ऐ दिल
बिला-ग़रज़ नहीं साहिब-सलामतें तेरी

हर एक लफ़्ज में पिन्हां है दफ्त़रे-मा`नी
कुछ ऐसी सहल नहीं हैं सलासतें तेरी
 
मेरे वतन तेरे तहवार ईद, दीवाली
हसीं हैं सारे जहां से रिवाइतें तेरी

ये अपने अपने मुक़द्दर की बात है प्यारे
कि रंजो-ग़म तो मेरे हैं मसर्रतें तेरी

जला न दे कहीं आतिश तुझे तनफ़्फुर की
मिटा न दें कहीं तुझ को कुदूरतें तेरी
 
मिलेगा कुश्तों को इंसाफ़ ऐ ख़ुदा किस दिन
न जाने बैठेंगी किस दिन अदालतें तेरी

नहीं हैं जे़ब तुझे ख़ुद-सिताइयां 'रहबर`
अयां हैं सारे जहां पर फ़ज़ीलतें तेरी