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कभी - कभी जो नीति हमें चलना / अमित
Kavita Kosh से
कभी - कभी जो नीति हमें चलना सिखलाती है।
कभी वही हमको इच्छित पथ से भटकाती है।
कभी - कभी मन का सूनापन अच्छा लगता है।
कभी - कभी सूनेपन से तबीयत घबराती है।
कभी - कभी हम भरी भीड़ मे रहे अकेले से,
कभी अकेले में यादों की भीड़ सताती है।
कभी - कभी मिलने की इच्छा पागल कर देती,
कभी - कभी मिल जाने पर तबीयत उकताती है।
कभी - कभी यूँ ही सोचा तत्काल हुआ करता,
कभी - कभी छोटी सी आशा उम्र बिताती है।
कभी - कभी हम ईश्वर के अत्यन्त कृतज्ञ हुये,
कभी - कभी उनके विवेक पर चिढ़ सी आती है।
कभी - कभी खुशियाँ ही मन को विचलित कर देतीं,
कभी - कभी मन की पीड़ा भी मन बहलाती है।
कभी - कभी वर्षों तक कोई गीत नहीं बनता।
कभी - कभी हर पंक्ति स्वयं कविता हो जाती है।