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कभी / कमलेश्वर साहू

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कभी मैं आंगन हो जाता
और वह गौरैय्या
कभी वह मंुडेर हो जाती
और मैं कबूतर
कभी हम दोनों
दाना हो जाते
एक दूसरे के लिये
हां
मगर कभी
कभी कभी ही !