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कमरे के त्रिआयामी संसार में / विचिस्लाव कुप्रियानफ़

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कमरे के त्रिआयामी संसार में
मैं चौथा आयाम हूँ
यहाँ बिताता हूँ मैं अपना सबसे अच्‍छा समय
मास्‍को का समय
देखता हूँ घड़ी की तरफ़
कभी मेरे पास अन्तरिक्ष था
पर अब ख्‍याति है
कमरे में स्‍टूल पर
खड़ा है विचराकाय रूबिन
किसी भी अजायबघर में नहीं है वह इस तरह का
कभी उसकी जगह पर चहल-पहल थी
पर अब बेजान है यह जगह

त्रिआयामी स्‍थान में
लगातार फैल रहा है भूगोल
बढ़ रही है रूसी में बातें न करने वाली चीज़ों की तादाद
कुछ चीज़ें तभी जवाब देती हैं
अगर बात अँग्रेज़ी या जापानी में पूछी गई हो

कभी-कभी लगता है कि मैं अपने ही घर में विदेशी हूँ

प्राचीनता की याद सताती है जब
मैं बाल्‍कनी में निकलता हूँ हाथ में काँटा लिए
मर्तबान में खीरों के बीच मैं ढूँढता हूँ डिओजिन को
पर वह मिलता नहीं
वह फिर से चला गया है टॉर्च लिए
दिन की ड्यूटी पर

भूख मुझे हाँक ले जाती है उत्‍तर की दिशा में
(जिस तरह हाँक ले जाती है वह कुछ लोगों को
गर्म जगहों की तरफ़, चाची के यहाँ, सरातफ़ की भीतरी इलाके में)
मैं जा रहा हूँ नान्‍सेंन की तरह, पिरी और सिदोफ़ की तरह
और अंतत: खोज निकालता हूँ उत्‍तर का यह प्रान्त
महसूस करता हूँ प्रेरक महक --
इतनी स्‍तैपीय, इतनी पेशेखोन और इतनी रूसी
व्‍यर्थ नहीं गए सोवियत संघ के बिजलीघरों के
ठण्ड को बचाए रखने के प्रयास

उत्‍साहित मैं भागता हूँ लिखने की मेज़ की तरफ़
जहाँ हमेशा इन्तज़ार करता है मेरा एक चहचहाता पक्षी
चोंच में काग़ज़ लिए
मैं छूता हूँ उसके पंख
वे परम सुख में चरमराते हैं सफ़ेद काग़ज़ पर
प्रकट होता है पहला काले रंग का तारा
खिड़की के बाहर धीरे बह रही होती है वोल्‍गा
उसमें झूल रहा होता है प्रख्‍यात आलोचक का शरीर
बचाओ ! बचाओ !

व‍ह निकल आता है वोल्‍गा से बाहर
उसे उठाता है हमारी लिफ़्ट के तारों का जाल
वह अन्दर आता है
चहचहाते पक्षी की चोंच से निकालता है
काले रंग का तारा लिए काग़ज़
देखता है ऐनक से --
काले तारे तो होते नहीं हैं
देखना होगा इसे और पास से
जाना होगा 'अतुकान्त कविताओं' में भी
अपनी सतरंगी ज़िन्दगी के और समीप
कहता है
डूबे हुए का शव