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कमल, गुलाब, जुही, गुलमुहर बचात भए / नवीन सी. चतुर्वेदी

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कमल, गुलाब, जुही, गुलमुहर बचात भए।
महक रहे हैं महकते नगर बचात भए॥

ये खण्डहर नहीं ये तौ धनी एँ महलन के।
बिखर रहे हैं जो बच्चन के घर बचात भए॥

चमन कों देख कें माली के म्हों ते यों निकस्यौ।
कटैगी सगरी उमरिया सजर बचात भए॥

जो छन्द-बन्ध सों डरत्वें बे देख लेंइ खुदइ।
मैं कह रहयौ हों गजल कों बहर बचात भए॥

सरद की रात में चन्दा के घर चली पूनम।
अधर, अधर पे धरैगी अधर बचात भए॥