कमसूरत लड़की का एकालाप / गौरव पाण्डेय
मुझे किसी ने ख़त नहीं लिखा
दिखा नहीं कभी मेरा नाम
दीवारों पर
स्कूल के श्याम-पट पर भी नहीं
नदी किनारे लगी कागज की नावों पर
तैरते पत्तों पर भी नहीं
और न ही किसी पेड़ की छाल पर
मुझसे किसी ने पुस्तकें नहीं माँगी
कोई नहीं आया मेरे पीछे-पीछे कुछ दूर
कभी नहीं दिखा कोई मेरे खिड़की के सामने
मुझसे किसी ने रास्ता नहीं पूछा
मेरा नाम सुनकर फूल मुस्कुराये नहीं
हवाओं ने नहीं
गुनगुनाया मेरा नाम
बादलों पर नहीं छपा
इंद्रधनुषों ने कभी नहीं रचा मेरा नाम
मुझे नहीं पता वे कौन से घोड़े हैं
जिन पर सवार हो आते हैं
दूर देश के राजकुमार
और दूर देश की
यात्राओं पर चली जाती हैं मेरी सखियाँ
मेरे सपनों में न कोई फूल है
न कोई पक्षी
और न ही कोई झरना है
बस मेरे सपनों में एक हरा जंगल है
जहाँ जंगली सुअरों की
चिंघाड़ने की आवाजें आती रहती हैं
एक चुपचाप बहती नदी है
जिसके किनारे जंगली पशु
अपनी अनबुझ प्यास लिए
अपनी मैल धोने को खड़े हैं।