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कमाल-ए-इश्क़ है दीवाना हो गया हूँ मैं / मजाज़ लखनवी

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कमाल-ए-इश्क़<ref>प्यार का जादू</ref> है दीवाना हो गया हूँ मैं ।
ये किस के हाथ से दामन छुड़ा रहा हूँ मैं ।

तुम्हीं तो हो जिसे कहती है नाख़ुदा दुनिया,
बचा सको तो बचा लो कि डूबता हूँ मैं ।

ये मेरे इश्क़ की मजबूरियाँ म'अज़-अल्लाह<ref>भगवान की दया से</ref>,
तुम्हारा राज़ तुम्हीं से छुपा रहा हूँ मैं ।

इस इक हिजाब<ref>परदा</ref> पे सौ बे-हिजाबियाँ सदक़े,
जहाँ से चाहता हूँ तुम्को देखता हूँ मैं ।

बताने वाले वहीं पर बताते हैं मंज़िल,
हज़ार बार जहाँ से गुज़र चुका हूँ मैं ।

कभी ये ज़ोम<ref>विश्वास</ref> कि तू मुझ से छुप नहीं सकता,
कभी ये वहम कि ख़ुद भी छुपा हुआ हूँ मैं ।

मुझे सुने न कोई मस्त-ए-बादा-ए-इशरत<ref>ख़ुशी के नशे में डूबा हुआ</ref>,
'मज़ाज़' टूटे हुये दिल की इक सदा हूँ मैं ।

शब्दार्थ
<references/>