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कम नहीं होती / अर्चना अर्चन
Kavita Kosh से
खुदा नाराज़ हो फिर भी इबादत कम नहीं होती
दुआ पूरी न होने से अकीदत कम नहीं होती
वो मुझको छोड़कर ऐसा गया वापस नहीं आया
मगर मजबूर हूं उससे मुहब्बत कम नहीं होती
मेरी आवाज़ सुनके जो ठिठक जाते घड़ी भर तो
किसी मरते हुए पर ये इनायत कम नहीं होती
सभी के साथ चलने के लिए खुद को बदल डाला
मगर ज़ालिम ज़माने की शिकायत कम नहीं होती
गई है जान उसकी हां, लड़ाई में उसूलों की
कोइ तमगा न मिलने से शहादत कम नहीं होती
उसे तुम देख ना पाओ मगर उसकी नज़र में हो
कि आंखें मूंद लेने से मुसीबत कम नहीं होती
बड़े उस्ताद हो माना मगर इतना नहीं समझे
जरा सा बांट लेने से लियाकत कम नहीं होती