भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

करकै कौल करार बखत पै नाटणियां रैहरे सैंटैक / मेहर सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आग्या बुरा जमाना मत लब गाठणियां रैहरे सैं
करकै कौल करार बखत पै नाटणियां रैहरे सैं।टैक

झूठ बराबर पाप नहीं बिन बोले सरता कोन्या रै
लोभ बराबर नहीं नीचता पर पेटा भरता कोन्या रै
परत्रिया हौं नागिण काली नर फिर भी डरता कोन्या रै
ये तै हौं सैं लाड करण की पर कोए भी करता कोन्या रै
आज काल भाई के सिर नै काटणियां रैहरे सैं।

अगड़ पड़ौसी न्यूं सोचें जां ना क्यांहे का चा हो रै
घर का होज्या उट मटीला ना छोरयां का ब्याह हो रै
मीठा बोल कालजा खा जा ना दुखै ना घा हो रै
अपणा मारै उड़ै गेरै धूप नहीं जित छां हो रै
गैरां की बहू बेटी नै घर पै डाटणियां रैहरे सैं।

मनै थोड़े माणस धर्म की खेती बोवण ओले देखे रै
मनै थोड़े माणस बात कान में चोवण आले देखे रै
थोड़े प्यारे ज्यान बखत पै खोवण आले देखे रै
बीस ऊत मनै धुम्मे के मिस रोवण आले देखे रै
ब्याह की जगह मौत पै लाडू बांटणियां रैहरे सैं।

के जीण्यां मैं जीवै सैं ये दुखी सैं गरीब बेचारे
धोखा दे कै मरवा दे सैं आज काल के प्यारे
कोण सै अपणा कुण पराया मनै पड़ते ला लिए सारे
बहुत से माणस रोवै सैं इस मेहर सिंह के मारे
मैं जाणूं सूं नीचें तै जड़ काटणियां रैहरे सैं।