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करतब-भर के बादल / व्लदीमिर मयकोवस्की

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नीले नभमंडल में
          तिरते हुए बादल
गिनती में सिर्फ़ चार
          कैसे कहूँ दल-बादल !
उनमें से प्रथम तीन
          मानव-आकृतियों-से
चौथा था — बालू पर
          ऊँट भरे डग जैसे ।
उनका सैलानी मन
          जब उरूज़ पर आया
पाँचवा बादल भी
          उनसे आ टकराया ।
लेकिन वह पाँचवाँ था
          ख़ासा ख़ुराफ़ाती—
अपने डीलडौल में
          छिपाए था कई हाथी ।
जो कि निकल-निकल
          यहाँ-वहाँ लगे भागने
उनसे आसमान भी
          पनाह लगा माँगने ।
तभी, शायद छठा, आया,
          क्या तो कमाल की
दी उसने घुड़की;
          हवा हुए पल-भर में
सब-के-सब
          ऐसी ज़ोरदार रही
छठे बादल की झिड़की !
          उसके बाद बादलों को
हरे चारे-सा चबाता हुआ
          पीले रंग के किसी जिराफ़-सा
दीख पड़ा सूरज
          चौकड़ी भरता आता हुआ !

अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल