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करता कैसी मनमानी है / रंजना वर्मा
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करता कैसी मनमानी है ।
अजब आज हिंदुस्तानी है।।
सुख दुख दोनों से विरक्त हो
चाल चल रहा अनजानी है।।
किसने कहाँ निभाया वादा
किसने दुनिया पहचानी है।।
जाति धर्म का उठा बवंडर
लूट पाट करनी ठानी है।।
कैसे कोमल भाषा बोले
मन जब इतना अभिमानी है।।
धार वेश साधू का कहता
भक्तों से दुनिया फ़ानी है।।
सुंदर वेष बना पाखंडी
ठगने की विद्या जानी है।।