करता रहा अता मुझे हरजाई कुछ न कुछ / सत्यवान सत्य

करता रहा अता मुझे हरजाई कुछ न कुछ
अंदोह दर्द ग़म कभी तनहाई कुछ न कुछ

बचकर चला मैं लाख ज़माने की भीड़ से
आती रही है सर मेरे रुसवाई कुछ न कुछ

बस थी ज़रा-सी बात मगर ज़िद पर वह रहा
बढ़ती रही यूँ बीच में फिर खाई कुछ न कुछ

बेशक बचा के हम चले दामन चराग़ से
लेकिन हमारे साथ थीं परछाई कुछ न कुछ

ऐसा नहीं है ज़ख़्म फ़क़त आपको मिले
हमने भी दिल पर चोट सदा खाई कुछ न कुछ

रुक जाएगा जो इश्क़ का जल दिल की झील में
जमती रहेगी देखना फिर काई कुछ न कुछ

ख्वाहिश अगर है आपका मेयार हो बुलंद
किरदार में भी लाइये गहराई कुछ न कुछ

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