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करता वह अब हर दिन एक बहाना है / रंजना वर्मा

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करता वह अब हर दिन एक बहाना है।
आंखों को जो ख़्वाब नये दिखलाता है॥

रब को क्यों इल्जाम लगा जाते हैं सब
जैसा जो करता है वैसा पाता है॥

मीलों तक फैला तनहाई का आलम
इनमें ही दिल अपना भूला रहता है॥

रोज़ बना रहता भीगा-भीगा मौसम
इससे जैसे दिल का गहरा रिश्ता है॥

फूल खिले हैं फिर हर पर्वत घाटी में
काँटों में भी तो बस इनको हँसना है॥