भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
करती है पानी -पानी / रमा द्विवेदी
Kavita Kosh से
मर्यादाएं न टूटें,इतना भी त्रास न दो।
कोई नारी बने अम्बिका इतना भी उपहास न दो॥
एक बार भीष्म ने नारी अधिकार का हरण किया था।
वह नारी तब बनी शिखण्डी,अरु अपना प्रतिशोध लिया था॥
इसलिए कभी ऐसा मत करना,कि कर न सको प्रायश्चित भी।
अंजाम भोगना पड़ता है,हर कुकृत्य का निश्चित ही॥
कोमलता को कमजोर समझना यह है तेरी नादानी।
आती है बाढ़ नदी में जब जग को करती है पानी-पानी॥
दुष्टों ने उत्पात मचाया,फिर भी धरती थमी रही है।
जब-जब धरती हुई प्रकंपित,सृष्टि में खलबली मची है॥