भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

करतूतों जैसे ही सारे काम हो गये / नईम

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

करतूतों जैसे ही सारे काम हो गए
किष्किंधा में लगता -
अपने राम खो गए ।

बाली और सुग्रीवों से कुछ -
कहा न जाए,
न्याय माँगते -
शबरी, शम्बूकों के जाए ।
करे धरे सब हवन, होम भी
हत्या और हराम हो गए ।

स्वप्नों सूझों की जड़ में ही -
दिग्गज मठ्ठा डाल रहे हैं,
और अस्मिता पर अपनी ही
कीचड़ लोग उछाल रहे हैं ।
देश-देश के क्षत्रप मिलकर -
आज केन्द्र से बाम हो गए ।

देनदारियों का मत पूछो,
डेवढ़ी बैठेंगी आवक से
फिर भी पड़े हैं पीछे
राम हमारे, मृग शावक के ।
वर्तमान रिस रहा सिरे से -
गत, आगत बदनाम हो गए ।