करते-करते ध्यान कृष्ण का जब मन मुस्काते हैं।
ह्रदय दृगों के सम्मुख ही तब कृष्ण चले आते हैं॥
भक्तों का मन गहरे-गहरे डूबा करता है जब
तभी भक्तप्रिय ईश्वर के भी वे मन को भाते हैं॥
श्याम नाम की माला जपती थी राधा दीवानी
वैसा ही जप करें निरंतर तब मोहन आते हैं॥
अपनापा रसखान भुला कर श्याम-श्याम थे जपते
ऐसे ही दीवानों को श्री कृष्ण लुभा पाते हैं॥
मधुर स्वरों में वेणु बजा कर-कर लेते हैं मोहित
शरद पूर्णिमा की रातों को रास रचा जाते हैं॥
प्रेम दीवानी मीरा जपती कृष्ण नाम की माला
बिके प्रणय के मोल अमृत वे विष को कर जाते हैं॥
विनय करे प्रहलाद नाथ इक बार तो चले आओ
कातर स्वर सुन कृष्ण फाड़ कर खंभे को आते हैं॥