भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
करते करते ये ख़यालात ख़्वाब तक पँहुचे / संजय चतुर्वेद
Kavita Kosh से
करते-करते ये ख़यालात ख़्वाब तक पहुँचे
चरते-चरते मेरे घोड़े सराब तक पहुँचे
आए उश्शाक़ सनम से हिसाब करने लगे
दायर-ए-इश्क़ में लग्ज़िश के बाब तक पहुँचे
ख़ुदा का कौल भी हथियारबन्द होता गया
इसी तज़ाद में वहशी किताब तक पहुँचे
1996