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करते करते ये ख़यालात ख़्वाब तक पँहुचे / संजय चतुर्वेद

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करते-करते ये ख़यालात ख़्वाब तक पहुँचे
चरते-चरते मेरे घोड़े सराब तक पहुँचे

आए उश्शाक़ सनम से हिसाब करने लगे
दायर-ए-इश्क़ में लग्ज़िश के बाब तक पहुँचे

ख़ुदा का कौल भी हथियारबन्द होता गया
इसी तज़ाद में वहशी किताब तक पहुँचे

1996