(राग कालिंगड़ा-तीन ताल)
करत नहिं क्यों प्रभु पर बिस्वास।
विस्वंभर सब जग के पालक पूरैं तेरी आस॥
सुख लगि ठोकर खात इतहिं उत, डोलत सदा उदास।
मिलत न कबहूँ सुख विषयन में, दुखमय यह अभिलास॥
प्रभु-पद-पदम सदा चिंतन कर, छूटै जग की त्रास।
मन अनंत आनंद-मगन नित प्रमुदित परम हुलास॥