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करनी के फल भोगे पड़तो यार / सिलसिला / रणजीत दुधु
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करनी के फल फोगे पड़तो यार
अब दाहा मारा के झेलऽ मार।
नदिया भर के सभे खेत चनइला
अहरा, पोखरा तों पइन भुलइला
गाछ विरीछ के भी देलहो उखाड़
करनी के फल भोगे पड़तो यार।
पता न´ नदिया कबे कउन किनारा
कइसे सिमट के तब बहतइ धारा
बता रहल सिमाना, पुरनका ताड़
करनी के फल भोगे पड़तो यार।
बर-पीपर-पाँकड़ के भी काटला
शीशो महुआ नीम के उजाड़ला
के रोकतो कलकल नदिया के धार
करनी के फल भोगे पड़तो यार।
अब सीखे पड़तो जीये के ढंग
नदीये खोद खोद बनावऽ अलंग
गाछ विरीक्ष लगा दा दुनहूँ किनार
करनी के फल भोगे पड़तो यार।
जब जब अदमी कइलक छेड़खानी
तब तक परकिरती कइलक मनमानी
परकिरती से न´ पइलक पार
करनी के फल भोगे पड़तो यार।