करने जो किसी देश में व्यापार चले हम
घर छोड़ दिया त्याग के परिवार चले हम
दी कौड़ियों के मोल गंवा खेत जमीं भी
ख़्वाबों के लिये छोड़ के घर बार चले हम
है याद वो बचपन कि कभी छोड़ पिता को
रस्ते में कदम भी न कभी चार चले हम
हर लम्हा रहीं मुश्किलें गुरबत का बसेरा
कुछ टूटे हुए ख़्वाब लिये हार चले हम
राहें थीं कँटीली न कहीं बोल मुरव्वत
अपनी ही अना करते तार तार चले हम
आनी है कज़ा आयगी ये बात जरूरी
ख़्वाहिश के मगर हो के तलबगार चले हम
चाहा तो कि ईमान हिफ़ाजत से रहे पर
बन रब की निगाहों में ख़तावार चले हम