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करने हम ज़िन्दगी की / हरिवंश प्रभात
Kavita Kosh से
करने हम ज़िन्दगी की उगाही चले।
जंगलों की जहाँ राजशाही चले।
जिनके दर्शन से आँखों को परहेज़ है,
उनकी करने को हम वाहवाही चले।
आज की राजनीति में जायज है सब,
बेवजह कुर्सियाँ, जूते, स्याही चले।
लेना भी साँस दुश्वार है अब यहाँ,
जहर घोले हवा की तबाही चले।
जो घोटाले में पकड़े गये रहनुमा,
जेल में उनकी अब भी गवाही चले।
जो विदेशों में है काला धन देश का,
उसको प्रभात लाने सिपाही चले।