भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
करम करोॅ / राधेश्याम चौधरी
Kavita Kosh से
करम करोॅ फलों के चिंता नै करोॅ
धोखा जगह जगह पर छै केकरा की कहबोॅ।
करमोॅ रोॅ फोॅल मिट्ठोॅ होय छै
खटास कहियोॅ नै होय छै।
पसीना बहलोॅ नद्दी रोॅ चारोॅ जुंगा,
वहोॅ सुखी जाय छै।
लोर आरो लहूँ एक करि
आशा आरो उम्मीद जगाबै छी
मतर कि खाय लेॅ नै मिलैं
भुखलों ई सरकारी राज मेॅ आभियोॅ सुती जाय छै।
करमोॅ रोॅ सुरूज जबेॅ उगि जाय छै
कोय-नै कोय अन्न दाता मिली जाय छै।
शनि महाराज रोॅ दरबार मेॅ खिचड़ी मिली जाय छै।
खाय खिचड़ी सब्भेॅ प्राणी
मोॅन हुलसी जाय छै।