भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

करम काफ़ी है जानेजां सितम की क्या ज़रूरत है / कांतिमोहन 'सोज़'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

करम काफ़ी है जानेजां सितम की क्या ज़रूरत है ।
सिफ़र के बाद ख़ुद सोचो रक़म की क्या ज़रूरत है ।।

जो नादां है उसे दैरो-हरम<ref>मन्दिर-मस्जिद</ref> से क्या हुआ हासिल
जो दाना<ref>बुद्धिमान</ref> है उसे दैरो-हरम की क्या ज़रूरत है ।

हमें तकनीक की दरकार है सो तो नहीं मिलती
हमें सट्टे में इस चलती रक़म की क्या ज़रूरत है ।

जिन्हें रोटी लंगोटी या दवाई तक नहीं मिलती
तुम्हीं कह दो उन्हें परमाणु बम की क्या ज़रूरत है ।

जो कुछ तुमने बटोरा है जहाँ तक लाल डोरा<ref>गाँव की सीमा</ref> है
वो सब अपना है हमको इससे कम की क्या ज़रूरत है ।

ज़माने भर की ख़ुशियाँ खंदाज़न<ref>मज़ाक उड़ानेवाली</ref> हैं हाल पर तेरे
तुझे ऐ चश्मे-नम रंजो-अलम<ref>दुःख और कष्ट</ref> की क्या ज़रूरत है ।

हमारे दौर को समझे बिना कोई न जानेगा
तुम्हारे सोज़ को इस पेचो-ख़म<ref>आढ़ी-टेढ़ी बातें</ref> की क्या ज़रूरत है ।।

शब्दार्थ
<references/>