करम काफ़ी है जानेजां सितम की क्या ज़रूरत है / कांतिमोहन 'सोज़'
करम काफ़ी है जानेजां सितम की क्या ज़रूरत है ।
सिफ़र के बाद ख़ुद सोचो रक़म की क्या ज़रूरत है ।।
जो नादां है उसे दैरो-हरम<ref>मन्दिर-मस्जिद</ref> से क्या हुआ हासिल
जो दाना<ref>बुद्धिमान</ref> है उसे दैरो-हरम की क्या ज़रूरत है ।
हमें तकनीक की दरकार है सो तो नहीं मिलती
हमें सट्टे में इस चलती रक़म की क्या ज़रूरत है ।
जिन्हें रोटी लंगोटी या दवाई तक नहीं मिलती
तुम्हीं कह दो उन्हें परमाणु बम की क्या ज़रूरत है ।
जो कुछ तुमने बटोरा है जहाँ तक लाल डोरा<ref>गाँव की सीमा</ref> है
वो सब अपना है हमको इससे कम की क्या ज़रूरत है ।
ज़माने भर की ख़ुशियाँ खंदाज़न<ref>मज़ाक उड़ानेवाली</ref> हैं हाल पर तेरे
तुझे ऐ चश्मे-नम रंजो-अलम<ref>दुःख और कष्ट</ref> की क्या ज़रूरत है ।
हमारे दौर को समझे बिना कोई न जानेगा
तुम्हारे सोज़ को इस पेचो-ख़म<ref>आढ़ी-टेढ़ी बातें</ref> की क्या ज़रूरत है ।।