वार्ता- हरिश्चन्द्र को बात सुनकर कालिया कहने लगा कि मेरी कांशी में ऐसा दुखिया और गरीब कौन है जिस के पास मरघट का महशूल देने के लिए सवा रुपया भी नहीं है। राजा के दिल में इतनी गलानी पैदा हो जाती है कि उस का जिन्दगी से भी मन उचाट हो जाता है और कालिया को क्या कहता है सुनिए-
गहरी चोट लाग गी काले बस जीवण तै सरग्या
करले खरा महशूल तेरे मरघट का टोटा भरज्या।टेक
बेवारस समशाणा म्हं ठा बेटे नें ल्याई
ईंधन गोसा कट्ठा करकै उपर लाश जंचाई
लाकै आग बैठगी जड़ म्हं धूमां दिया दिखाई
मरघट का कर मांगण लाग्या जब दमड़ी तक ना पाई
न्यूं कह रही थी बेवारिस की क्यूं रे रे माटी करग्या।
बेवारस की चिता बुझा दी दर्द बहोत सा आया
धन माया तैं भरैं थे खजाने आज आने तक ना पाया
कांशी शहर म्हं ल्याकै काले यो किसा खेल दिखाया
कें माणस की पास बसायै या तो सब ईश्वर की माया
तनैं सवा के बदलै चीर ले लिया यो मेरा कालजा चरग्या।
कांशी कै म्हां आकै काले लिया तेरा सरणां था
कर तो मनै न्यू ना छोड़या कै इज्जत तै डरणा था
बेवारस बेटे की चिता मैं खुद जल कै नैं मरणा था
जिनके बेटे जवान मरै उन्हें जी कैं के करणा था
आज सूर्यवंशी खानदान की एक विषयर बेल कतरग्या।
साची साची कह रहयां सू बात करूं गड़बड़ तैं
मोती टूट रल्या रेत म्हं दूर हुय सै लड़ तै
जिसकी छां म्हं बेठया करती वो पेड़ काट लिया जड़ तै
ले हाजिर गात करूं काले सिर दूर बगा दे धड़ तैं
गुरु लख्मी चन्द की मेहर फिरी जब मेहर सिंह छंद धरग्या।