भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

करि के गवनवाँ स्याम छोड़ ले भवनवाँ / महेन्द्र मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

करि के गवनवाँ स्याम छोड़ ले भवनवाँ
अरमानवाँ कइसे राखब हो लाल।
गवना के सरिया धूमिलवों ना भइलें
सरमवाँ कइसे तेजब हो लाल।
बटिया जोहत मोरा अँखिया पिरइली
पीयर भइली देहिया हो लाल।
कहत महेन्दर स्याम भइले परदेसिया
घवाहिल कइलें छतिया हो लाल।